छठ पूजा का इतिहास, उत्पत्ति और विधि History Origin and System of Chhath Puja





History Origin and System of Chhath Pujaभारत दुनिया का एक देश है जहां प्राचीन परंपरा और संप्रदायें मौजूद हैं। भारत के त्यौहार प्रकृति के साथ बहुत नजदीकी संबंध रखते हैं। छठ पूजा उन्ही त्यौहारों में से एक है। यह त्योहार दिवाली के 6 दिन बाद मनाया जाता है। नदियों या तालाबों के किनारे पूजा किया जाता है जिसमें सूर्यास्त और सूर्योदय के समय सूर्य देव की पूजा, अर्घ देकर की जाती है।

1. छठ पूजा का त्योहार क्यों मनाया जाता है? Why is the festival of Chhath puja celebrated?

छठ पूजा महाभारत काल से भी पहले से मनाया जाता है। महाकाब्य महाभारत के अनुसार कर्ण को अंगराज कहा जाता था। महाभारत काल मे बिहार को अंग और बंगाल को बंग कहा जाता था। कर्ण बिहार के राजा थे और सूर्य देव के महान उपासक थे। उसी समय से सुर्य देव का उपासना के लिए यह त्योहार बिहार मे ज्यादा प्रचलित हुआ। यह त्योहार सूर्य और उषा को समर्पित है। भक्त सूर्य देव के साथ प्रतियुषा (शाम की आखिरी किरण) और देवी उषा (सुबह की पहली किरण) का आभार मानते हैं। सूर्य ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत है। सूर्य से ही पृथ्वी के सभी जीवों को ऊर्जा मिलती है। इस लिए भी सूर्य की उपासना की जाती है।

2. छठ पूजा का परंपरा Tradition of chhath pooja

यह त्योहार चार दिनों का है। जो तैयारी के साथ श्रद्धा से मनाया जाता है। पूजा के दौरान भक्त (जो व्रत करते हैं) शुद्धता बनाए रखने के लिए मानसिक रूप से परिवार से अलग रहते हैं। भोजन प्रसाद (व्रत करने वालों के लिए) नमक, प्याज या लहसुन के बिना बनाया जाता है। यह त्योहार चार दिनों की तैयारी के साथ पूरा किया जाता है।

3. छठ पूजा का पहला दिन (नहाय खाय) The first day of Chhath Puja (Nahaya Khay)

व्रत करने वाले भक्त गंगा के पवित्र जल या शुद्ध जल से घर के आस-पास या घर मे स्नान करते हैं। वे केवल एक ही बार भोजन करते हैं। भोजन आम की लकड़ी के आग से कांस्य या मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है।




4. छठ पूजा का दूसरा दिन (खरना) Second day of chhath pooja (bhna)

व्रत करने वाले भक्त पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम को रसियाव या खीर , पुरी (पुड़ी) और फल के साथ सूर्य की पूजा करने के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं। उपवास तोड़ने के बाद व्रतधारी अगले 36 घंटों तक बिना कुछ खाये पीये व्रत करते हैं।

5. छठ पूजा का तीसरा दिन (संध्या अर्घ) Third Day of Chhath Puja (Evening Argh)

व्रत करने वाले हल्दी रंग के साड़ी पहनते है तथा नदी के किनारे डूबते हुए सूर्य को संध्या का अर्घ देते है। इस दिन की शाम और रात में, भक्त छठी माता का लोक गीत गाते है। मिट्टी का छठी माता का स्थान बनाया जाता है। उस स्थान के किनारे से पांच गन्ना खड़ा करके कोसी भरा जाता है। 5 गन्ना , पंचतत्व (पृथ्वी, वायु, जल, अग्नि और अंतरिक्ष) के प्रतीक है।

6. छठ पूजा का चौथा दिन (सुबह का अर्घ) Fourth day of Chhath Puja (Arrival of the morning)

छठ पूजा का यह अंतिम दिन होता है। इस दिन परिवार और दोस्तों के साथ भक्त नदी के किनारे सूर्य भगवान को सुबह का अर्घ देते हैं और अंत में भक्त छठ पूजा का प्रसाद लेकर अपना उपवास समाप्त करते हैं।




7. छठ पूजा के पीछे की कहानी The story behind Chhath Puja

छठ पूजा का त्यौहार सीता माता, भगवान राम के अयोध्या लौटने के बाद की थी और द्रौपदी ने भी यह त्योहार मनाया था। यह भी लोकमत है कि यह पूजा पहली बार सूर्य पुत्र कर्ण ने शुरू की थी।

आम तौर पर यह व्रत महिलाएं करती हैं कुछ संख्या में पुरुष भी इस व्रत को करते है। वे अपने परिवार के कल्याण और संतानो की समृद्धि के लिए छठी माता से प्रार्थना करते हैं। इस त्योहार के समय यात्रीयों की भीड़ को देखते हुए भारतीय रेलवे हर साल छठ पूजा के लिए विशेष ट्रेनें चलाती है।

यह त्योहार बिहार , उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, गुजरात, बैंगलोर, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो, गुयाना, सूरीनाम, फिजी, न्यूजीलैंड, मलेशिया, मकाऊ, जापान, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, जमैका, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, आयरलैंड और ऑस्ट्रेलिया में मनाया जाता है।

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