जलियाँवाला बाग नरसंहार का कहानी Story Of Jalianwala Bagh Massacre





Story Of Jalianwala Bagh Massacreइतिहास के पन्नों से पंजाब प्रांत के अमृतसर मे जलियाँवाला बाग का एक कहानी जो नरसंहार के रूप मे जाना जाता है, यह घटना 13 अप्रैल, 1919 हुआ था। अंग्रेजों द्वारा बीसवीं शताब्दी के दौरान किए गए प्रमुख जघन्य राजनीतिक अपराधों में से एक था। इस घटना का नाम जलियांवाला बाग कांड के नाम से जाना जाता है, यह बाग 7 एकड़ में फैला हुआ एक उद्यान है, जिसके चारों ओर दीवारें हैं।

जलियांवाला बाग का इतिहास History of Jallianwala Bagh

प्रथम विश्व युद्ध की शुरुआत होने के बाद से ही पूरे देश में , विशेष रूप से पंजाब और पश्चिम बंगाल के नागरिकों मे नाराजगी और अशांति बढ़ गई थी। प्रथम विश्व युद्ध भयानक नतीजों के कारण था, जैसे- मुद्रास्फीति, भारी कराधान, मृतकों और घायल सैनिकों की एक बड़ी संख्या जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्र को एकजुट होने मे बहुत योगदान दिया। 1919 में बिगड़ती नागरिक अशांति के वजह से रौलट कमेटी का गठन हुआ। रौलट एक्ट एक विधायी कार्य था, जिसमें कुछ राजनीतिक मामलों को जूरी की उपस्थिति के बिना निर्णय लिया जा सकता था और बिना किसी मुकदमे के संदिग्धों को नजरबंद करने की अनुमति दिया जाता थी। उन्ही दिनो महात्मा गांधी एक क्रांतिकारी के रूप में उभरे थे। इस अधिनियम के परिणामस्वरूप पूरे देश में उग्र विरोध प्रदर्शन होने लगा। खासकर पंजाब में अशांति हो गयी।




भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दो लोकप्रिय नेता- सैफुद्दीन किचलू और सत्य पाल की रिहाई की मांग को लेकर अमृतसर के उपायुक्त के आवास पर प्रदर्शन हुआ। यह विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गया जिसके परिणामस्वरूप टाउन हॉल और रेलवे स्टेशन को जला दिया गया, टेलीग्राफ और संचार प्रणाली को भी विघटित कर दिया गया। परिणामस्वरूप यूरोपीय सरकार के अधिकारियों के साथ-साथ कई नागरिकों की भी मौतें हुईं।

इन गतिविधियों के कारण, अमृतसर शहर में कुछ दिनों तक खामोशी रही। जबकि पंजाब के अन्य हिस्सों में कई तरह का नुकसान हुआ। इन घटनाओ के कारण ब्रिटिश सरकार ने पंजाब को मार्शल लॉ के तहत रखने का फैसला किया। नागरिकों के स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया गया था। सार्वजनिक समारोहों तथा अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा था।

जलियांवाला बाग में क्या हुआ? What Happened In Jallianwala Bagh?

13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में हजारों लोग इकट्ठा हुए थे। यह दिन (बैसाखी) सिखों के लिए नए साल की शुरुआत का प्रतीक है और पूरे पंजाब में बैसाखी त्योहार के रूप में मनाया जाता है। पंजाब के लोग अपने परिवार और प्रियजनों के साथ बैसाखी मनाने के लिए दूर-दूर से आते हैं।

बैसाखी की सुबह, कर्नल रेजिनाल्ड डायर पूरे अमृतसर में कर्फ्यू लागू करके सभी जुलूसों और समारोहों पर प्रतिबंध लगाने का घोषणा किया था। 4 या अधिक लोगों के समूह को सार्वजनिक रूप से मिलने पर प्रतिबंधित था। दोपहर 12:40 बजे, डायर को जलियांवाला बाग में होने वाले बैठक के बारे में गोपनीय सूचना मिली, जिसके परिणामस्वरूप दंगा और विरोध प्रदर्शन हो सकता था। मध्याह्न काल तक जलियांवाला बाग में हरमंदिर साहिब के भक्तों सहित हजारों लोग इकट्ठा थे। जलियांवाला बाग 10 फीट तक की दीवारों से सभी तरफ से घीरा हुआ था। इसका प्रवेश द्वार संकीर्ण था। इस स्थान पर भक्तों, व्यापारियों और किसानों द्वारा भीड़ लगाया गया था। जो बैसाखी के दौरान अमृतसर का दौरा करने और घोड़े तथा पशु मेले का आनंद लेने के लिए आए थे। शाम 4:30 बजे वहां होने वाली गुप्त बैठक और वहां मौजूद लोगों के संख्या को देखते हुए जनरल डायर सशस्त्र सैनिकों के साथ पहुंचा।

मुख्य प्रवेश द्वार सशस्त्र सैनिकों द्वारा संरक्षित था। वहाँ फौजियों के साथ बख्तरबंद गाड़ियाँ थीं जो मशीन गन और विस्फोटक से लैस थे। डायर के आदेश पर, खचाखच भीड़ पर निर्दयता से गोलीबारी होने लगी। लगभग 25,000 लोग गोलीबारी के समय वहां मौजूद थे। कुछ लोग भागने की कोशिश किये, जबकि कुछ ने जलियांवाला बाग के परिसर में बने कूएं में कूदने का विकल्प चुने। सैनिकों द्वारा ज्यादा नुकसान पहुँचाने के लिए घनी भीड़ जहाँ था। वहीं पर फायरिंग करने के लिए आदेश दिया गया था। हिंसा के इस जघन्य कार्य के परिणामस्वरूप अत्यधिक सामूहिक निर्मम हत्यायें हुई। गोलीबारी लगभग 10 मिनट तक जारी रही, और यह तब समाप्त हुई जब गोलियां लगभग समाप्त हो गई। कर्फ्यू लगने के कारण बिखरे शवों को भी डर से कोई लेने के लिए नहीं गया। डायर यह फायरिंग बैठक को तितर-बितर करने के लिए तथा भारतीयों को उसके आदेशों की अवहेलना करने के लिए दंडित करने के लिए किया था। ब्रिटिश लेफ्टिनेंट पंजाब के गवर्नर द्वारा भेजे गए एक टेलीग्राम में, कर्नल डायर के कार्यों को उसके द्वारा सही करार दिया गया। इसके अलावा, ब्रिटिश लेफ्टिनेंट ने भी वायसराय से पूरे पंजाब में मार्शल लॉ लागू करने के लिए कहा था।



जलियांवाला बाग में कितने लोग मारे गए थे? How many people were killed in Jallianwala Bagh?

गोलीबारी से मरने वालों की संख्या विवादित है। अंग्रेजों द्वारा आधिकारिक जांच में 379 लोगों की मौत के बारे में बताया गया था। कांग्रेस द्वारा मरने वालों की संख्या लगभग 1,000 बताई गई थी। कुएं से ही लगभग 120 शव निकाले गये थे।

जलियांवाला बाग के महत्व को ध्यान में रखते हुए, 1920 में जलियांवाला बाग में एक स्मारक स्थल बनाने के लिए एक ट्रस्ट का स्थापना किया गया था। अमेरिकी वास्तुकार, बेंजामिन पोल्क द्वारा स्मारक का निर्माण किया गया। स्मारक का उद्घाटन 13 अप्रैल 1961 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद किये थे।

आस-पास के इमारतों के दीवारों पर गोली के निशान आज भी दिखाई देता हैं। दीवारों पर गोलियों के निशान लोगों को उस दिन होने वाले दर्दभरी गोलीबारी का याद दिलाता है। कुआं भी इस परिसर में संरक्षित है जिसमे से 120 शव निकाले गये थे।

जलियाँवाल बाग कुआँ Jallianwala Bagh Well

जलियाँवाला बाग और यहाँ का कुआँ देखने से हमारे पूर्वजों द्वारा अपने वतन को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए किए गए संघर्षों को याद दिलाता है। यहाँ पूरे साल पर्यटक आते रहते है। यह बाग पंजाब में अमृतसर के प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर के पास स्थित है। सप्ताह के किसी भी दिन सुबह 6:30 से शाम 5:30 बजे तक बिना किसी शुल्क के इस बाग मे (वर्तमान मे पार्क) जाया जा सकता है।

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