1947 में भारत के विभाजन के लिए जिम्मेदार कौन है? Who is responsible for the partition of India in 1947?





Who is responsible for the partition of India in 1947भारत में बड़ी संख्या में लोग ऐसा सोचते हैं कि 1947 मे जो देश का विभाजन हुआ, उसका जिम्मेदार कौन थे। बहुत से लोग गांधी जी को दोष देते है। लेकिन यह गलत है। बहुत से लोग गांधी जी के विचार के दिशा को नहीं जानते हैं। गांधी जी पूरी तरह से भारत के विभाजन के खिलाफ थे और भारत को विभाजित करने के लिए तैयार नहीं थे। 15 अगस्त 1947 को लाल किला, दिल्ली मे आजादी का जस्न मनाया जा रहा था। उस समय गांधी जी कलकत्ता मे थे। हिन्दू मुस्लिम दंगा से दुखी होकर 24 घंटे अन्न ग्रहण नही किये थे और कहे थे कि हमे खूनी आजादी मिली।

जिन्ना का जिद्द विभाजन का कारण था। जब चर्चिल ब्रिटेन में चुनाव हार गये, तो नई ब्रिटेन सरकार भारत से बाहर निकलने का फैसला किया और इसे एक नया राज्य बनाने की प्रक्रिया में शामिल होने का फैसला किया। ब्रिटेन की इस नई सरकार से सुभाष चंद्र बोस का सम्बन्ध अच्छा था।

भारत का स्वतंत्रता दिवस – 15 अगस्त Independence Day Of India – 15th August

यूके सरकार के प्रतिनिधि, आईएनसी के सदस्य जो भारत में एकमात्र पार्टी थी और जिन्ना ने अपने साथी सदस्यों के साथ मिलकर अंग्रेजों के प्रस्थान के बाद देश के भाग्य पर फैसला करने के लिए शिमला मे 3 जून, 1947 को सम्मेलन आयोजित किया।

इस सम्मेलन मे शुरु से ही जिन्ना ने मांग की कि मुसलमानों के लिए एक अलग राज्य जरूरी है। जिन्ना को संयुक्त राज्य (एक देश) के आइडिया को समर्थन देने का कोई मन नहीं था।




सरदार पटेल और आईएनसी के अन्य सदस्यों ने जिन्ना के गैर सहकारी व्यवहार को देखकर बहुत नाराज हुए।

इसके बाद कई बैठकें मुस्लिम लीग (जिन्ना और पाकिस्तान के आइडिया के समर्थकों) और आईएनसी (संयुक्त भारत के आइडिया) के बीच इस मुद्दे को हल करने में नाकाम रहीं, क्योंकि जिन्ना ने पाकिस्तान के अलग राज्य होने से कम समझौता करने से इंकार कर दिया था।

गांधीजी किसी भी बैठक मे भाग नही लिए थे। वे देश के लिए एक मार्गदर्शक थे। इन बैठकों के दौरान जब देश के लोगों को धर्म के आधार पर विभाजन के बारे में पता चला, तो देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक दंगे फैले, जिसमें हजारों लोग अपनी जान गंवा दिये। गांधीजी ने उस समय दंगों को रोकने के लिए देश भर में यात्रा की।




इस बीच भारत ने अपने संविधान पर काम करना शुरू कर दिया था और आशा व्यक्त की थी कि जिन्ना उनसे जुड़ जायेंगे और भारत एकजुट हो जायेगा। बाद में कई रियासतें शामिल हो गईं लेकिन जिन्ना कभी शामिल नहीं हुए।

बाद में जिन्ना ने एक शर्त रक्खा कि उन्हें एक अलग राज्य दिया जाए या एक राष्ट्र और दो संविधान होना चाहिए, दूसरा संविधान मुस्लिमों के लिए हो।

दो संविधान बनाना भारत की विविधता के बीच सद्भाव बनाने की प्रक्रिया में बाधा डालने वाला था। इसके अलावा देश की कार्यात्मक विफलता होता और देश के प्रगति मे बाधा डालता।

इस प्रकार भारत के पास कोई विकल्प नहीं था और दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के लिए खुद को विभाजित किया गया।

यदि अनसुलझा मुद्दा लंबे समय तक जारी रहता, तो एक अतिरिक्त खतरा यह था कि अंग्रेजों ने भारत पर शासन करना जारी रखा था, जिसमें कहा गया था कि केवल वे जानते थे कि इस देश को प्रभावी ढंग से कैसे चलाया जा सकता है। देश के लोग अपने मुद्दों को हल करने में असफल रहे। यह एक अद्भुत वृत्तचित्र था जो आपको उस समय की स्थिति और विभाजन के कारण का एहसास होगा।



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