राम जन्मभूमि की असली कहानी Real story of Ram Janmabhoomi





Real Story Of Ram Janmabhoomiसन् 1949 मे 22-23 दिसंबर के रात मे भगवान राम की एक मूर्ती बाबरी मस्जिद में दिखाई दिया। इस घटना के बाद बाबरी मस्जिद के इतिहास के बारे मे जानने के लिए लोगो मे उत्सुकता बढ़ गयी और तभी से अयोध्या मे राम जन्म भूमि पर मंदिर बनाने के लिए लड़ाई शुरू हो गया।

हिन्दूओं का कहना है कि भगवान राम के जन्म स्थान पर एक मंदिर था जो मुगल बादशाह बाबर सन् 1528 में ध्वस्त कर दिया था और उस जगह पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था। पुरातात्विक विभाग के खुदाई करने पर जो सबूत मिले उससे यह ज्ञात हुआ कि बाबरी मस्जिद बनने से पहले उस जगह पर पहले तीन बार मंदिर बन चुका है। लेकिन हिंदूओं का दावा मुसलमानों द्वारा विवादित था। मुसलमानो द्वारा बाबरी मस्जिद में नमाज अदा करना जारी था। 1949 के घटना के बाद अयोध्या के इस घटना का चार दशक बाद भारतीय राजनीति में असर पड़ा।

हनुमान दास पोद्दार के दोस्त बाबा राघव दास ने कांग्रेस के टिकट पर फैजाबाद विधानसभा क्षेत्र से जून 1948 का उपचुनाव जीते थे। बाबा राघव दास जीतने के बाद हिंदूओं द्वारा सांप्रदायिक अभियान चलाया गया और मुसलमानों को स्थानीय साधू और हिंदू महासभा कहने लगे कि वे बाबरी मस्जिद में नमाज न पढ़े। यूपी कांग्रेस मे सर्वोच्चता की लड़ाई में लगे उस समय के मुख्य मंत्री गोविन्द बल्लभ पंत ने बाबा राघव दास का सांप्रदायिक अभियान मे सहयोग किये।

हिंदुओं को वहां पूजा करने का अधिकार मिला जहां सन् 1949 मे 22-23 दिसंबर के रात मे मूर्ती प्रगट हुई थी। संदेह यह भी किया गया कि मूर्ती जो दिखाई दिया था वो निर्वाण अखाड़ा और उनके सहयोगियों द्वारा रखवाया गया था।




हनुमान दास पोद्दार एक संत थे जिनको देवताओं मे काफी श्रद्धा थी। जब वे सुने कि सरकार मूर्ती को वहां से हटवा सकती है, तो पोद्दार ने प्रमुख लोगों को पत्र लिखा कि अयोध्या में राम जन्मभूमि एक प्राचीन जगह है। मुस्लिम आए तो और वहां पर मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाये। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम की एक मूर्ती वहां दिखाई दिया है। रामायण का पाठ और कीर्तन वहां हो रहा है। मैंने सुना है कि सरकार भगवान की मूर्ती वहां से हटाना चाहती है। भगवान राम का जन्मस्थान हिंदुओं से सम्बंधित है। अगर मूर्ती को हटा दिया गया, तो जहां पूजा हो रहा है वो जगह नियंत्रित करना असंभव हो जाएगा।

अयोध्या में रहने के दौरान, पोद्दार ने महसूस किया कि स्थानीय हिंदूओं के पास विवादित साइट पर दैनिक पूजा करने का खर्च और कानूनी लड़ाई लड़ने का खर्च का बोझ होगा। इस लिए पोद्दार ने उस जगह पर अखण्ड पाठ, किर्तन और मूर्ति की दैनिक पूजा के लिए हर महीने 1,500 रुपये का वादा किये, इसके अतिरिक्त कानूनी लड़ाई लड़ने का खर्च और अन्य प्रमुख खर्च का ख्याल रखने का वादा किये।

अदालत मे मामले को ज्यादा समय तक खींचा गया और हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता की रेखा अयोध्या में और गहरी हो गई। पोद्दार विवाद के लिए स्थायी समाधान खोजने के दिशा मे काम करने लगे और अयोध्या के प्रमुख मुस्लिमों को मनाने के लिए काम करने लगे। पोद्दार के समाधान के संदेश के साथ कुछ उदार मुसलमान अयोध्या भेजे गए। पोद्दार ने दावा किया था कि इनमें से कुछ उदार मुसलमान विवादित जगह के लिए मुस्लिम आंदोलन के खिलाफ दिल्ली में अनसन करने के इच्छुक थे।

पोद्दार के बाद वर्षों तक यह मामला अनसुलझा रहा। 1989-90 में, वीएचपी ने विवादित साइट के समीप राम मंदिर की नींव रखी। 6 दिसंबर 1992 को, बीजेपी, वीएचपी और उसके सहयोगियों ने विवादित साइट पर कार सेवा (स्वयंसेवकों) की एक बड़ी रैली का आयोजन की। कार सेवकों की भीड़ ने विवादित स्थल में घुसपैठ करके बाबरी मस्जिद को कुछ देर मे ही ध्वस्त कर दिया। उस समय भाजपा के वरिष्ट नेता एल.के. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती तथा वीएचपी , आरएसएस और बजरंग दल के शीर्ष कार्यकर्ता मौजूद थे।




भारतीय संस्कृति के यह खिलाफ हैं कि मंदिर बनाने के लिए कोई मस्जिद को ध्वस्त किया जाये या कोई मस्जिद बनाने के लिए कोई मंदिर को ध्वस्त किया जाये । राम जन्मभूमि एक मंदिर-मस्जिद मुद्दा नहीं है। मंदिर तो कहीं भी बनाया जा सकता है लेकिन जन्मभूमि को नही बदला जा सकता है। श्री राम जन्मभूमि करोड़ों हिन्दूओं के भावना से जुड़ा है और यह जगह हिन्दूओं के लिए सबसे पवित्र स्थानों में से एक है। यह जगह जैसे मुसलमानो के लिए मक्का – मदीना है वैसे ही यह जगह हीन्दूओं के लिए है।

जहां आधी शताब्दी से कोई नमाज ना पढ़ी जाती हो और जहां हमेशा राम नाम का पाठ हो रहा हो उस जगह पर मस्जिद के लिए लड़ाई हो रही है। कोई भी ईमानदार मुस्लिम हिंदू भावनओं को ठेस पहुँचाकर वहां मस्जिद बनाना नहीं चाहेगा। यह देश हिन्दू और मुसलमान दोनो का है। त्याग के भाव से ही आपसी प्रेम रहता है।

भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल गुजरात के द्वारका में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण का घोषणा करके भारतीय संस्कृति की रक्षा का परियोजना शुरू किये थे। लेकिन पटेल के मौत के बाद भारतीय राजनेता इस तरह के मामलों पर ध्यान नहीं दिये क्योंकि वे अपने राजनीतिक हितों की देखभाल में ही व्यस्त रहे। राम जन्मभूमि को राजनीतिक मुद्दे के रूप में नहीं देखना चाहिए बल्कि पूर्ण रूप से आध्यात्मिक मामले और देश के गौरव के रूप में देखा जाना चाहिए।

भगवान राम के जन्मस्थान को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है। बाबरी मस्जिद को सम्मानपूर्वक वर्तमान जगह से स्थानांतरित करके कहीं और पुनर्निर्मित किया जाना चाहिए। इससे हिन्दू और मुसलमानों मे भाईचारा बना रहेगा और भगवान राम के पूजा का जगह राम जन्माभूमि के पुनरुत्थान करने मे सुविधा होगा।

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