कृष्ण जन्माष्टमी Krishna Janmashtami





History of Krishna Janmashtamiकृष्ण जन्माष्टमी भगवान विष्णु के अवतार , भगवान श्री कृष्ण के जन्म के खुशी मे मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि लगभग पांच हजार साल पहले ‘द्वापर युग’ में मथुरा में उनका जन्म हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी को अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंती, कृष्णाष्टमी, गोकुलष्टमी और जन्माष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक हिंदू त्यौहार है। यह त्यौहार आम तौर पर हिंदू कैलेंडर के अनुसार भद्रपद के महीने मे अंधेरे या कृष्ण पक्ष के आठवें दिन अष्टमी तीथि को मनाया जाता है। यह आमतौर पर अगस्त और सितंबर के महीनों में होता है। पूरे भारत और विदेशों में भी हिंदुओं द्वारा बड़े उत्साह के साथ यह त्यौहार मनाया जाता है। लोग पूरे दिन उपवास रखते हैं और 12 बजे रात तक भजन गाते हैं। कृष्णा जन्माष्टमी का एक और दिलचस्प पहलू दही-हांडी है। दही-हांडी का खेल श्रीकृष्ण के चंचल और शरारती स्वभाव को दर्शाता है, जहां युवा पुरुषों की टीम मानव पिरामिड बनाती है ताकि मक्खन के ऊंचे लटकते हांडी तक पहुंचा जा सके और तोड़ा जा सके।

कृष्ण जन्माष्टमी का इतिहास History of Krishna Janmashtami

पुराणों के मुताबिक, श्रीकृष्ण भादो (भाद्र पद) महिने के अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र मे मध्यरात्रि को जन्म हुआ था। इसी लिए यह दिन जन्माष्टमी के रूप में चिह्नित है। श्रीकृष्ण भारत में सबसे अधिक पूजा करने वाले देवताओं में से एक है। ये हिंदू धर्म से संबंधित है। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठ अवतारों में से एक माने जाते है। श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी दिलचस्प है। कहानी इस तरह है कि एक दिन पृथ्वी अपने सतह के ऊपर हो रहै पापों से दु:खी हो कर ब्रह्मा जी के पास गई और सहायता के लिए अपील की। ब्रह्मा जी ने उन्हे सुनने के बाद, भगवान विष्णु से अपील की। विष्णु भगवान ने कहा कि वे पृथ्वी पर जन्म लेगे और उनका अवतार पृथ्वी पर हो रहे हर प्रकार के पाप को नष्ट करेगा।

Jane राखी या रक्षाबंधन का इतिहास

उस समय, मथुरा दुखी राज्यो में से एक था क्योंकि देवकी के भाई कंस ने अपने पिता राजा उग्रसेन को जेल में डाल दिया था और खुद को नया राजा घोषित कर दिया था। भगवान विष्णु मानव रूप में जन्म लेने के लिए फैसला किये। देवकी और वासुदेव के विवाह समारोह में, एक दिव्य भविष्यवाणी हुई थी जिसमे घोषणा हुआ था कि देवकी और वासुदेव का आठवां पुत्र कंस को मारेगा। अपने बचने के लिए, कंस ने अपनी बहन देवकी को मारने के लिए गया लेकिन वासुदेव द्वारा आश्वासन देने के बाद हत्या का विचार छोड़ दिया कि वे अपने सभी बच्चों को कंस को सौंप देगे। कंस ने देवकी और वासुदेव को जेल में डाल दिया। कंस ने जन्म के तुरंत बाद सभी छह बच्चो को मार डाला। दैवीय हस्तक्षेप से सातवें बच्चे (बलराम) को बचाया गया था, बलराम को देवकी के गर्भ से रोहिणी (वासुदेव की दूसरी पत्नी) में स्थानांतरित कर दिया गया था।




देवकी और वासुदेव जैसा आठवें बच्चे का कल्पना किये थे, भगवान कृष्ण का जन्म दिव्य रूप में हुआ। उनके हथेलियों में कमल के संकेत थे। वे गहनो से सजे हुए थे और ताज पहने हुए थे। जैसे ही वे मध्यरात्रि में पैदा हुए, घटनाओं की एक श्रृंखला ने वासुदेव जी को चकित कर दिया। वे देखे कि जेल का द्वार खुला हैं और सभी रक्षक सो रहे हैं। उन्होंने तुरंत गोकुल में अपने करीबी दोस्त नंद के बारे में सोचा और कंस से उन्हें बचाने के लिए अपने बच्चे को सौंपने का फैसला किया। यमुना नदी पार करते हुए वासुदेव नंद के निवास पर पहुंचे और नंद की बेटी के साथ अपने बेटे का आदान-प्रदान किया। जेल के अन्दर पहुंचने पर, दरवाजा बंद हो गया और उन्हे फिर से जंजीर लग गया जैसे कि कुछ भी नहीं हुआ। गार्ड भी जाग गए और बच्चे की रोना सुनने के बाद, आठवें बच्चे के जन्म के बारे में कंस को सूचित किया गया। जैसे ही कंस बच्चे को मारने के लिए पहुंचा, बच्ची उसके हाथ से फिसल गयी और आसमान की तरफ उड़ गयी, यह घोषणा करते हुए कि कंस का विनाश करने वाला पैदा हो चुका है और सुरक्षित है।

कृष्ण जन्माष्टमी का समारोह Celebration of Krishna Janmashtami

जन्माष्टमी के दिन पूरे भारत में श्रधालू उपवास करते हैं और श्री कृष्ण की जीवन कथा और शिक्षाओं को पढ़ते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के मंदिरों को खूबसूरत ढंग से सजाया जाता है और बच्चों को उनके आध्यात्मिक प्रिय भगवान कृष्ण और राधिका के रूप में सजाया जाता है। कृष्ण लीला या कृष्ण के जीवन, खासकर बचपन से दृश्यों को दर्शाते हुए नाटकों या झाकियों का प्रदर्शन किया जाता है। मध्यरात्रि में 12 बजे के बाद , जब भगवान कृष्ण का जन्म होना माना जाता है, आरती’ किया जाता है और लोग विशेष रूप से इस अवसर के लिए तैयार मिठाई और प्रसाद खा कर अपना व्रत तोड़ते हैं।विशेष रूप से मक्खन और मिश्री का प्रसाद और धनिया को भून करके पीस कर चीनी डालकर पंजीरी का प्रसाद बनाया जाता है।



कृष्ण जन्माष्टमी का लोकप्रिय स्थान Popular Place Of Krishna Janmashtami

जन्माष्टमी का त्योहार उत्तर और दक्षिण भारत में एक समान रूप से मनाया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों मे यह त्यौहार अलग-अलग मनाया जाता हैं। दक्षिण भारत में यह उत्सव कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे अधिक प्रचलित हैं। दोनों जगहों पर, भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति एक मंडप मे सजाया जाता है। भक्तिम (संस्कृत में नाश्ता और मिठाई), विशेष रूप से त्यौहार के लिए तैयार होता हैं और भगवान कृष्ण को पेश किया जाता हैं। इसके साथ उनके पसंदीदा फल भी चढ़ाया जाता हैं। कर्नाटक के कुछ हिस्सों में, चक्ली, अवलाक्की और बेलदा पनाका विशेष रूप से त्यौहार के लिए तैयार किया जाता हैं। उत्तर भारत में यह उत्सव खुशी और धूमधाम से मनाया जाता है। जबकि गोकुल, मथुरा और वृंदावन में इस त्योहार को मनाने के लिए बाहर से लोग आते हैं। मथुरा और वृंदावन का जन्माष्टमी उत्सव, जहां श्रीकृष्ण ने अपना जीवन बिताया था, बहुत खास हैं। उत्तर भारत के सभी मंदिरो मे यह त्योहार धुम धाम से मनाया जाता है। मुंबई और पुणे के शहरों में, दही-हांडी का आयोजन किया जाता है जिसमें पुरुषों का एक समूह मानव पिरामिड बनाता है ताकि मक्खन के मटके तक पहुंच जाए और इसे तोड़ लिया जाये । गुजरात में द्वारका शहर , उड़ीसा और पश्चिम बंगाल के पूर्वी राज्यों में, लोग इसे उपवास के साथ मनाते हैं और मध्यरात्रि में पूजा करते हैं। यद्यपि मनाने का तरीका एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न होता हैं, फिर भी भगवान की भक्ति हर जगह समान होती है। इस प्रकार, यह कहना गलत नहीं होगा कि श्रीकृष्ण भारत में सबसे ज्यादा श्रद्धा और प्रेम से मनाए जाने वाले भगवान हैं।



Related Posts